चकवा-चकवी
एक था चकवा
एक थी चकवी
दोनों पक्षी हर समय साथ-साथ उड़ते
अठखेलियाँ करते
पंखों से पंख रगड़ तपिश पैदा करते
एक रोज़ शरारत में उन्होंने
एक साधु की तपस्या भंग कर दी
साधु ने शाप दे दिया
कि आज से तुम दोनों का साथ ख़त्म
जैसे ही दिन ढलेगा,
चकवा नदी के इस किनारे होगा
और चकवी नदी के उस किनारे
दिन में चकवा और चकवी
एक-दूसरे को पहचानते तक नहीं
जैसे ही अँधेरा छाता,
उड़कर नदी के विपरीत छोरों पर चले जाते
वहाँ से सारी रात
अपने प्रेम की वेदना की कविता गाते
मिलन की प्रतीक्षा करते
रात भर दुआ करते
कि किसी तरह साधु ख़ुश हो जाए
और अपना शाप वापस ले ले
लेकिन शाप देने के बाद साधु लापता हो गया
वह साधु शब्द के अर्थ में भी नहीं बचा
प्रेम को लगा शाप कभी वापस कहाँ होता है?
चकवी अक्सर मेरी कविताएँ पढ़ती है
पढ़-पढ़कर रोती है
कहती है,
''चकवा जो गाता है, तुम वह लिखते हो
ऐसा आख़िर कैसे करते हो? तुम चकवा हो?''
भोली है यह नहीं जानती, मैंने कभी कोई कविता दिन में नहीं लिखी
पोस्ट स्क्रिप्ट :
हर शाम चकवी पूछती है :
''रात-भर जागोगे? ऐसी कविता लिखोगे, जो नदी के दोनों किनारों को जोड़ दे?''
- रचनाकार : गीत चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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