तुम जिसे प्रेम कर रही हो इन दिनों

tum jise prem kar rahi ho in dinon

पवन करण

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तुम जिसे प्रेम कर रही हो इन दिनों

पवन करण

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    तुम्हें पता है, इन दिनों तुम जिसे प्रेम कर रही हो

    उसकी जाति क्या है

    जिसे तुम अपना सब कुछ सौंपती जा रही हो लगातार

    क्या तुम उसकी इस बात का मर्म समझती हो

    जो वह तुमसे कहता है हर बार

    एक बात जो मैं तुम्हें अपने बारे में बता नहीं रहा हूँ

    मैं उसे तुमसे छिपा नहीं रहा

    वह बात उसकी जाति को लेकर है

    तुम्हारा प्रेम है कि उसने तुम्हें इस बात पर कभी

    ध्यान नहीं देने दिया कि क्यों ऐसा होता है जब भी

    जाति को लेकर सबके बीच कोई-कोई बात चलती है

    वह चुप बना रहता है

    अपनी जाति को लेकर नहीं करता कोई बात

    और वह यह भी चाहता है जितनी जल्दी हो

    बदले उसके लिए कष्टप्रद यह विषय

    जब तुम छोटी जातियों को लेकर घृणा उगलती हो

    वह तुमसे अपनी आँखें चुराने लगता है

    क्यों वह अपनी जाति को लेकर तुम्हें

    तपाक से कोई उत्तर नहीं देता

    तुम्हारे आगे क्यों टाल जाता है वह

    अपनी पहचान का उल्लेख

    यह बात जिसे इस भय से कि वह

    किस जाति का है जानकर छोड़ दो तुम उसे

    बताना चाहते हुए भी नहीं बता पा रहा है तुम्हें

    बताना चाहता हूँ मैं

    तुम जो उसे छोड़ने को तैयार नहीं क़तई

    तुम जो उसके साथ बिताना चाहती हो जीवन

    तुम जो उसे अपने प्रति मानती हो सबसे संवेदनशील

    मुझे नहीं लगता उसकी असलियत जानकर

    उसकी ओर वह बहाव रह पाएगा तुम्हारा

    जो अभी है तुम्हारे भीतर अपार

    उसकी जाति उसकी जाति उसकी जाति

    यह शोर कान पका डालेगा तुम्हारे

    उसकी जाति की तरफ़ हमेशा तनी रहने वाली उँगली

    अपनी आँखें बंद कर लेने के लिए कर देगी तुम्हें विवश

    और यह सब तुम्हारे द्वारा उनकी पसंद के पुरुष के

    चुन पाने की वजह से नहीं

    उसकी छोटी जाति का होने की वजह से होगा

    पता नहीं ये बातें सुन-सुनकर

    तुम कितना अडिग रह पाओगी

    कि कम से कम तुम्हें जाति तो देखनी थी

    तुम कहीं भी कुछ कर लेतीं हमें मंज़ूर होता

    लेकिन वह, वह तो क़तई स्वीकार नहीं

    हम किसी को उसके बारे में किस मुँह से बताएँगे

    सिर्फ़ अपना बनाए रहने के लिए

    तुमने कितनी क़समें नहीं दीं उसे

    कितने प्रण नहीं लिए उससे

    उसकी जीभ पर कितने खारे आँसू नहीं बरसाए अपने

    मुझे नहीं लगता सदियों से संताप झेलते

    उसके दायरे में शामिल होने की सोचकर ही

    अपने कलेजे को काँपने से बचा पाओगी तुम

    क्या होता है इससे जो उसके लिए तुम अपना

    सब कुछ लुटाने और वह तुम्हारे लिए

    गर्दन कटाने तैयार हो,

    गर्दन कट सकती है, पहचान नहीं

    तुम जब भी उसके साथ जीवन गुज़ारने की कहती हो

    वह झुका लेता है अपना सिर, साथ-साथ चलने की

    सुनते ही ठिठक जाते हैं उसके क़दम,

    इसलिए नहीं कि वह कमज़ोर है बहुत, बल्कि इसलिए कि

    तुमसे बेहद प्रेम करता वह भी नहीं चाहता

    उसके प्रेम की जगह जीवन भर

    उसकी जाति का बोझ ढोती रहो तुम

    देह में धँसकर रह जाने वाली जाति की इस फाँस को

    भले ही दबा लो तुम आज, ज़रूरी तो नहीं

    वह भीतर दबी रहे हमेशा, उभरे नहीं कभी

    क्या पता कल यही फाँस तुम्हें बार-बार

    गहरी नींद से उठाकर तुम्हारे बग़ल में सोते

    आदमी की जाति का कराए एहसास

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्त्री मेरे भीतर (पृष्ठ 97)
    • रचनाकार : पवन करण
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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