क्यों दुःखी हो यशोधरा

kyon duःkhi ho yashodhra

जयाप्रभा

जयाप्रभा

क्यों दुःखी हो यशोधरा

जयाप्रभा

और अधिकजयाप्रभा

    यशोधरा क्यों दुःखी हो!

    वे बौद्ध और तपस्वी हैं

    चिंताएँ उन्हें कभी घेरती नहीं

    जरा और मरण का भय भी नहीं

    वे इसे पहले ही जानते हैं

    कि ठीक बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञानोदय होगा!

    वह आधी-रात अनंत यात्रा का आरंभ है

    सिर्फ़ तुम्हीं को कुछ पता नहीं

    यशोधरा क्यों दुःखी हो

    गवाक्ष से सटकर ऐसी दर्द-भरी निगाहें क्यों

    तुम्हें सूर्योदय से इतना भय क्यों री?

    परवाह नहीं

    तुम्हारी प्रतीक्षा व्यर्थ नहीं जाएगी

    कहते हैं

    किसी किसी दिन दीक्षाव्रत काशाय वेशधारी

    भिक्षापात्र लिए

    तुम्हारे आँगन में भी

    हाथ फैलाए चला आएगा

    तुम शिथिल देह लिए

    दीन-वदन हो

    सामने जाओगी

    प्राण को भीख में दे दोगी

    उनके मन में यह उम्मीद कहीं छिपी होगी

    यशोधरा अब भी क्यों दुःखी हो

    वे बौद्ध और तपस्वी हैं

    चिंताएँ उन्हें कभी घेरती नहीं

    जरा और मरण का भय भी नहीं

    अष्टांगिक मार्ग पर तुम

    इस तरह तारों को मत गिनो

    यशोधरा!

    अब तुम कोई त्याग मत करो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 57)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ पी.वी नरसा रेड्डी एवं देवीप्रसाद मित्र
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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