मधुमक्खियों का छत्ता हूँ

madhumakkhiyon ka chhatta hoon

बजरंग बिश्नोई

बजरंग बिश्नोई

मधुमक्खियों का छत्ता हूँ

बजरंग बिश्नोई

और अधिकबजरंग बिश्नोई

    जीवन-राग के छूट गए सुर

    कभी उलाहना देने नहीं आए

    जिन सुरों पर बजता रहा राग

    वे भी अंत तक कभी

    आभार व्यक्त करने नहीं आए

    सुनने वालों ने कभी तालियाँ बजाईं

    वे बीच में छोड़कर गए

    सुरों का

    संगीत का कोई

    ज्ञान नहीं था

    यह जीवन-राग पूरा हुआ है

    मधुमक्खियों के सहारे

    तरह-तरह के फूलों के पराग

    सुगंध से अलग-अलग

    संगीत

    सुर

    झंकृत होते हैं

    मधुमक्खियों के झुंड

    उठाते रहे हैं

    अपनी पसंद के सुर

    जैसे मधु एकत्रित करने वाली मधुमक्खियाँ

    कुछ सेब के फूलों से

    तो कुछ अंजीर के फूलों से

    कुछ सरसों के फूलों से

    कुछ सिर्फ़ नीम के फूलों का

    शहद एकत्र करती हैं

    उनका शहद उसी तासीर का

    उसी रंग-रूप का होता है

    कुछ झुंड दो या तीन पसंदों वाला

    होता है और तब ब्लेंडिड हनी बनता है

    मुझे जिस झुंड का सहारा मिला

    वे राजप्रासाद के उद्यानों में नहीं

    गली बस्तियों के परिमल के झोंकों की

    स्वर-लहरियों से पराग मधु लाकर रखती रहीं

    इस तरह मंद्र के कुछ सुर लगे

    वही एक दूसरे से मिले

    उसी से जीवन-राग बना

    सच पूछो तो यह राग उनका ही है

    जो छूट गया वह उनकी पसंद नहीं रही

    मैं मोम का छत्ता कौन होता हूँ

    इसका मलाल करने वाला

    उन्होंने मुझे अपना छत्ता बनाया

    उन्होंने ही सुर मधु उसमें जमा किया

    वही गाती हैं

    वही बजाती हैं

    वे चली जाएँगी तो मुझमें

    अपना निर्भार मोम का छत्ता भर ही

    तो छोड़ जाएँगी

    जीवन-राग

    जीवन-संगीत

    सब उनका है

    स्रोत :
    • रचनाकार : बजरंग बिश्नोई
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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