बच्चा और झुनझुना

bachcha aur jhunajhuna

यतींद्र मिश्र

यतींद्र मिश्र

बच्चा और झुनझुना

यतींद्र मिश्र

और अधिकयतींद्र मिश्र

    हर तरफ तोपें गरज रही हैं और फूट रहे हैं बम

    बारूद की महक से परिचित होने लगी है दुनिया

    ठीक इस समय सारी बुरी खरोंचों और हतप्रभ दरारों से दूर

    अपने निश्छल भोलेपन में झुनझुने से खेल रहा एक बच्चा

    वर्णमाला के सारे सलोने अक्षरों से अनभिज्ञ

    उसे पता नहीं कोई बात है जो उसके भविष्य से खेल रही है

    और ठीक उसके झूले के आस-पास पनप रहा एक षड्यंत्र

    एक चौकस और दुनियादार निगाह

    बदलना चाहती है उसके झुनझुने की आवाज़

    वह लोरी की जगह मर्सिया जैसी कोई

    बेवजह-सी चीज़ रखना चाहती है

    फिर भी झुनझुने की आवाज़ से आश्वस्त है

    बाक़ी बची हुई दुनिया

    क्योंकि दुनिया का सबसे भरोसेमंद सपना है बच्चा

    और बच्चे के लिए बम तोप की गरज

    सिर्फ खेल-खेल में पैदा की गई मज़ेदार आवाज़ ही हो सकती है

    यह अलग बात है कि

    उससे वह झुनझुने का काम नहीं ले सकता

    इस समय दुनिया में और बहुत सारा काम हो रहा है

    मगर बचपन के गलियारे में इतना मुकम्मल धोखा नहीं रचा जा सकता

    जिसे एक चौकस निगाह बम और बंदूक़ की शक्ल में सँजो रही है

    झुनझुना इसमें क्या कर सकता है भला?

    वह सरहद पर लड़ नहीं सकता

    वह बम की तरह दग नहीं सकता

    बस अपनी ईश्वरीय झनक में बच्चे को डुबोए रख सकता है

    और मासूमियत के इर्द-गिर्द बज सकता है

    आप विश्वास करें चाहे करें

    यह तय है कि एक दिन इन्हीं बमों, बंदूक़ों और तोपों के बीच

    जब झुनझुने की आवाज़ दब जाएगी

    बच्चा अपने आप-पास का खेल समझने लगेगा

    वर्णमाला के सारे अक्षर उस समय

    अपने अर्थ पूरी निर्ममता से उसके सामने खोलकर रख देंगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतींद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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