आत्मनिर्भरता

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बोधिसत्व

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    पृथ्वी आत्मनिर्भर है और सूर्य भी

    यह कहा जा सकता है

    लेकिन कोई नहीं है आत्मनिर्भर

    चंद्रमा बादल समुद्र तारे

    सब टिके हैं एक दूसरे के सहारे!

    पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी है उनका संबल

    सूर्य देता है चंद्रमा को अपनी चमक अपनी रौशनी

    समुद्र से जल लेते हैं बादल

    और उसे पृथ्वी को लौटा देते हैं

    थोड़े सुख-दुःख जोड़-कटौती के साथ!

    पृथ्वी को लौटाना भी समुद्र को ही लौटाना होता है

    नदियों को लौटाना भी समुद्र को लौटाना होता है।

    कपड़े निर्भर हैं धागों पर

    धागे रूई-कपास पर

    कपास खेत पर

    खेत सूर्य के ताप, मेघ और जल पर

    जल समुद्र पर

    समुद्र टिका है पृथ्वी की गोद में

    पृथ्वी टिकी है सूर्य-चंद्र के खिंचाव और दुत्कार पर!

    उदाहरण अनेक हो सकते हैं

    पराए पर निर्भर होने के

    तुम एक आत्मनिर्भर का उदाहरण दे सकते हो क्या?

    फेफड़े निर्भर है हवा पर

    ख़ून निर्भर है अन्न पर

    शरीर निर्भर है पता नहीं कितनी चीज़ों पर

    शब्द निर्भर हैं अक्षरों पर

    अक्षर ध्वनियों पर

    और ध्वनियाँ वायु और शून्य के विस्तार पर!

    बहुत कुछ निर्भर है तुम्हारे देखने और देखने पर

    बहुत कुछ निर्भर है तुम्हारे सुनने और सुनने पर

    बहुत कुछ निर्भर है तुम्हारे बोलने और चुप रहने पर

    तवा निर्भर है आँच पर

    वह ख़ुद गर्म नहीं हो सकती इतनी स्वयं से कि

    सेंक दे एक रोटी ख़ुद के ताप से

    बटलोई अन्न नहीं जुटा सकती और

    हल ख़ुद नहीं जोत सकते खेत

    लोहा निर्भर है

    हाथ भट्ठी और हथौड़े पर और उस निहाई पर कि वह हँसिया बने या कुछ और

    और इस निर्भरता में भाथी और उसके उस चमड़े को भूल जाएँ

    जिस पर निर्भर है यह सब कुछ गला देने का व्यापार!

    और उस पशु को भी नहीं भूलें जिसकी खाल से बनती है भाथी

    और उस हाथ और छुरे को भी नहीं जो उतरता है खाल

    और बनाता है भाथी!

    वह अकेला पेड़ भी आत्मनिर्भर नहीं है

    वह जितना पृथ्वी पर निर्भर है

    उतना ही पृथ्वी की नमी पर

    और उस हवा पर भी जो नहीं दिखती

    तुम्हें उस पेड़ को!

    तुम जो कुछ और जहाँ तक देख रहे हो

    या नहीं भी देख रहे हो सब निर्भरता का खेल है यह

    निर्भरता सृष्टि का जल है!

    जहाँ निर्भरता का जल नहीं

    वहाँ कोई लोरी नहीं कोई झिलमिल नहीं

    कोई गीत नहीं!

    पैदल जाते लोगों के घाव पर निर्भर है यह जनतंत्र

    तुम इनसे आत्मनिर्भर होकर दिखाओगे क्या?

    तुम हज़ार जन्म लेकर भी आत्मनिर्भरता का

    कोई एक उदाहरण बताओगे क्या?

    स्रोत :
    • रचनाकार : बोधिसत्व
    • प्रकाशन : कल्चर बुकलेट

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