वेटिंग रूम में सोती स्त्री

weting room mein soti istri

अनुराधा सिंह

अनुराधा सिंह

वेटिंग रूम में सोती स्त्री

अनुराधा सिंह

और अधिकअनुराधा सिंह

    हरे मख़मली पत्तों पर

    सहेजा

    चम्पा का शीलवान फूल नहीं

    अज्ञात रेगिस्तान में

    जहाँ तहाँ भटकता

    ख़ुदमुख़्तार रेत का बगूला है

    रेलवे के प्रतीक्षालय में

    बेसुध सो रही औरत

    मानो, अगली किसी ट्रेन का टिकट

    उसके बस्ते में नहीं

    मानो इस शहर में कहीं जाना ही नहीं उसे

    किसी घर में उसके दूर देस से लौट आने की

    प्रतीक्षा नहीं हो रही

    मानो, करवटें नहीं बदल रहा

    कोई प्रेयस

    कहीं उदास सफ़ेद सिलवटों पर

    चूल्हे पर खदबदाती दाल कहीं विकल नहीं कि

    कोई आए

    चमचा ही घुमा जाए

    मानो, नहीं है किसी दफ़्तर के

    बेचैन आँकड़ों को

    उसके एक सही का इंतज़ार

    ऐसे सो रही है वह निश्चिंत

    सूरज भी चढ़ आया है आज इस तेज़ी से

    कि आस-पास बैठी औरतें

    दिन चढ़े तक सोती इस औरत के

    चाल चलन को लेकर हलकान होने लगी हैं

    ऐसे तो यह

    किसी रात प्रेम भी कर लेगी घर से बाहर

    कैसी औरत है

    इसे अपने थान पर पहुँचने की जल्दी नहीं

    इसका कोई खूँटा है भी या नहीं

    बिना नाथ पगहा सोती है क्या कोई औरत

    ऐसे चित्त, ठीक पृथ्वी की छाती पर

    रेलवे के वेटिंग रूम में सोती हुई अकेली स्त्री

    जवाबदेह नहीं

    चाय की असमय पुकार की

    वह औरतों के

    अकारण रात भर घर से बाहर रह सकने

    की अपील पर

    पहला हस्ताक्षर है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराधा सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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