अनहद के पार जाता हुआ घर

anhad ke par jata hua ghar

यतींद्र मिश्र

यतींद्र मिश्र

अनहद के पार जाता हुआ घर

यतींद्र मिश्र

और अधिकयतींद्र मिश्र

    एक बे-दरो-दीवार का घर था। अनहद के पार जाता हुआ घर। ऊपर खुले आसमान की नीली कनात वाली छत के नीचे पसरा अनथक विश्रांति का घर। शून्य गढ़ शहर में चहलक़दमी के लिए पगडंडी के रास्ते पहुँचता हुआ घर। अदृश्य का घर। व्यक्त का घर।

    अनंत के अहाते का घर। एक घर रमैया की दुलहिन का, हाट बाज़ार से चैन लूटकर बनाया हुआ घर। सूरज, चंद्रमा, नक्षत्रों और तारों के झुरमुट का घर। सुकून के ओसारे का घर। अवधूत की चादर पर फैला अपनत्व का घर।

    लुकाछिपी के खेल का घर। जीतने की ज़द्दोजहद और हारने के उत्साह का घर। दुनियावी तमाशा और सब कुछ फूँक डालने का घर। अंतहीन प्यास और अक्लांत समर्पण का घर।

    एक घर ऐसा, जो बिना दीवार बिना खिड़की बिना दरवाज़े बिना छत बिना अहाते बिना आँगन बिना परछी बिना बिछावन बिना साजो-सामान बिना खाट का घर। प्रेम का घर या शायद ख़ाला का घर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतींद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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