अमरफल

amarphal

अरुण कमल

अरुण कमल

अमरफल

अरुण कमल

और अधिकअरुण कमल

     

    एक

    तोते का जुठाया अमरूद दो मुझे
    जिसके भीतर की लालिमा फूटती हो बाहर
    गिलहरी के दाँतों के दाग़वाला जामुन दो काला
    अंधकार के रस से भरा हुआ
    पक कर अपने ही उल्लास से फटता 
    एक फल दो शरीफ़े का 
    और रस के तेज़ वेग से जिस ईख के 
    फटे हों पोर
    वह ईख दो मुझे
    और ख़ूब चौड़े थन वाली गाय का दूध 
    जिसके चलने भर से 
    छीमियों से झरता हो दूध

    मुझे छप्पन व्यंजन नहीं
    बस एक फल दो सूर्य का लाल फल
    जिसे बस एक बार काटूँ
    और अमर हो जाऊँ
    वही अमरफल!

    दो

    सबसे अच्छे फल थे वे
    जो ऋतु में आए
    जब पौधा था
    पूरे उठान पर

    लेकिन सबसे अंतिम फल ही
    जो पड़े डाल पर ज्वाए
    टेढ़े बाँगुर
    अगली ऋतु के लिए सहेजे हमने 
    वही अमरफल!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरुण कमल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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