अधूरी कविताएँ

adhuri kawitayen

राजेश जोशी

राजेश जोशी

अधूरी कविताएँ

राजेश जोशी

और अधिकराजेश जोशी

    अधूरी कविताएँ देखती रहती हैं एकटक अपनी अंतिम पंक्ति के बाद

    काग़ज़ पर रह गई ख़ाली जगह को

    उम्मीद करती हैं अधूरी कविताएँ कि वे कभी कभी पूरी की जाएँगी

    कहीं कहीं किसी कविता में काम जाएँगी उनकी पंक्तियाँ

    कई दिनों तक बीच-बीच में खटखटाती हैं वे हमारे दरवाज़े

    जैसे याद दिलाती हों कि हम यहीं हैं आस-पास!

    ईर्ष्या के कारण शायद कई बार वे नई कविताओं को आने से रोकती हैं।

    कोई नई पंक्ति आने को होती है

    कि तेज़ी से उसे धकियाती हुई जाती है कोई बिसरी हुई अधूरी कविता

    वे चरागाह में खो गई गायें हैं जो रास्ता तलाशती हुईं एक दिन

    जाती हैं वापस और बंद दरवाज़ों के बाहर रँभाती हैं।

    वे बेचैन आत्माएँ हैं भटकती हुई हमारे आस-पास

    हमेशा लेकिन ऐसा नहीं होता

    कभी-कभी वे पड़ी रहती हैं बहुत चुपचाप किसी काग़ज़ के कोने में

    दिनों, महीनों और कभी-कभी तो जीवन भर

    हमारी विस्मृतियों में जाकर वे कहीं छिप जाती हैं

    कई बार तो कई-कई बार बुलाना पड़ता है उन्हें

    और वे फिर भी नहीं आतीं

    अपने अधूरे होने का एहसास या अधूरेपन का दर्प

    ऐसा ज़िद्दी बना देता है उन्हें

    कि वे टस से मस नहीं होतीं अपनी जगह से

    वे कुछ कहती नहीं हैं पर लगता है जैसे कहती हों

    हम आधे-अधूरे ही ठीक हैं

    कौन-सी कविता है ऐसी जो पूरी की पूरी आई हो धरती पर

    जैसे-तैसे कुछ जोड़-घटाकर पूरी या पूरी-सी कर ली जाती हैं

    यूँ भी दुनिया में सबसे बड़ी तादाद अधूरी कविताओं की है

    पूरी कविताओं में भी कहीं कहीं बचा ही रहता है एक अधूरापन

    हर मुकम्मल कविता को लिखना चाहता है

    दूसरा कवि दूसरी तरह

    और मज़ा यह है कि ऐसा करके पहला संतुष्ट होता, दूसरा

    हर कवि को हमेशा ही लगता है कि कविता में कहीं कुछ छूट गया है

    जो होना था... हो सकता था...।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 89)
    • रचनाकार : राजेश जोशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    • संस्करण : 2015

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