एक बार और जाति की लाज बचा लेने के बाद

ek bar aur jati ki laj bacha lene ke baad

आसित आदित्य

आसित आदित्य

एक बार और जाति की लाज बचा लेने के बाद

आसित आदित्य

और अधिकआसित आदित्य

    हाँ साब, हम जानते थे उसे

    लगभग रोज़े हमको नदी किनारे मिल जाया करता था।

    कुमार सानू के गाने उसके होंठों पर अंगराया करते थे,

    उसके बाएँ हाथ की दो अँगुरी

    चारा बालने वाली मशीन से उसके बचपन में ही बाली जा चुकी थी,

    उसकी दाईं हथेली के बीचोबीच तिल था एक

    उसे देख-देख कहा करता था

    कि एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा

    पूरा टोला नाम लेगा उसका

    और देखो साब, आज सच में सब उसका नाम ले रहे हैं।

    जानत हो साब... वो हरदमे मुस्कियाता रहता था

    उसे देखकर हमको कैफी सा'ब का वो शेर याद जाया करता था कि

    तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, का ग़म है जिसको छुपा रहे हो?

    का ग़म था उसे साब?

    उस बखत हमें नहीं मालूम था

    लेकिन अब...जब ठाकुरहना के पोखरे में

    उसकी फूली हुई लाश मिली है,

    जब उसका दायाँ कान खा चुकी हैं मछरियाँ

    तब हमको उसका ग़म मालूम है, सबको मालूम है।

    ये तो नहीं मालूम कि उनका चक्कर कब स्टारट हुआ साब

    कोई कहता है कि कुछ दिनों के लिए

    ये गया था ठाकुरहना में गारा-माटी करने

    तब दोनों के बीच के ऊसर में फुलाया था प्यार का फूल

    तो कोई कहता है कि जिस दिन

    बाबू साब की बिटिया गई थी काली माई तर हलुआ-पूड़ी चढ़ाने

    तब मिले थे दोनों और तबसे ही चल पड़ी थी बात।

    इन दोनों का प्यार गाँव के लिए मुस मारने की दवा थी साब

    जब भी दोनों की चर्चा चलती समाज मरे मुस की तरह गंधाने लगता था।

    अच्छा हुआ कि मर गया

    जात-बिरादरी के चादर के बाहर जब पसारने लगे पाँव प्यार का भूत

    तो उसे गुनाह ही तो कहते हैं साब

    और जब ग़ुनाह किया था उसने तो सज़ा तो मिलनी ही थी!

    वैसे बाबू साब की बिटिया ठीक है साब

    सुना कि कल रात चोरी-छिपे रेलगाड़ी के पटरी की ओर जा रही थी?

    स्रोत :
    • रचनाकार : आसित आदित्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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