कुछ कहना है मुझे भी

kuch kahna hai mujhe bhi

आसित आदित्य

आसित आदित्य

कुछ कहना है मुझे भी

आसित आदित्य

और अधिकआसित आदित्य

    किसी को इतना भी हीन मत महसूस कराना

    कि चाँदनी की छठी रात में मजबूर हो जाए हाथ उसके

    जलते चाँद पर पोतने को कालिख

    किसी को इतना भी मत ठुकराना

    कि किसी बरसाती रात अपने काँपते हाथ में ख़ंजर लेकर

    दौड़ते-हाँफते हुए आए प्रेम उसका

    और ठीक तुम्हारे चौखट पर दम तोड़ दे

    मत खेलना इतना भी किसी से

    कि तुम्हारे खेल के मैदानों को तब्दील करना पड़े उसे

    असलहों-कारतूसों से भरे गोदाम में

    किसी को इतना भी मत रुलाना

    कि पत्थर हो चुकी आँखें भूल जाएँ रोने का सलीक़ा

    किसी को इतना भी मत सताना

    कि पीड़ा के उच्चतम शिखर पर खड़ा

    अपनी फूटी आँख से तुम्हारे क्रूर चेहरे को भेदता

    मुस्कुराता रहे अपने ज़ख़्मी होंठ से वो

    मेरे दुश्मन, मेरे दोस्त,

    याद रखना सदा

    क्रूरता से जन्म लेती है क्रूरता

    प्रेम से जन्मता है प्रेम।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आसित आदित्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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