आग

aag

धर्मेश

और अधिकधर्मेश

    मैं हज़ार बातें कहने वाला इंसान

    ज़रूरत आने पर दो बातें कह पाया

    आप चाहें तो मुझे फुद्दू कह सकते हैं

    लेकिन मुझे फिर भी लगता है कि आपको यह जानना चाहिए

    कि जिस समय मेरे घर में आग लगी हुई थी

    मुझे कोई बात नहीं सूझ रही थी

    मैंने कितनी ही कविताएँ पढ़ी थीं जो बताती थीं कि आग कैसे लगती है

    कविताएँ जो कहती थीं कि आग को लगने से पहले बुझा देना ज़रूरी है

    कविताएँ जो आदमियों ने, औरतों ने

    और जो इन बेहूदा खाँचों में नहीं आते उन सारे लोगों ने लिखीं

    ज़ाहिर है आदमियों की कविताएँ ज़्यादा छपीं

    पर अभी बात दूसरी है

    मेरा मसला ये है कि इतने सारे लोगों के कहने के बाद भी

    इतने सारे लोगों की मशक़्क़तों के बाद भी

    इतने सारे लोगों की मुहब्बतों के बाद भी

    कुछ लोगों ने मेरे घर में आग लगा दी है

    मुझे इस आग को बुझाने की तरकीब नहीं आती

    इसलिए यह तय है कि मेरा घर ख़ाक हो जाएगा

    मैं इसमें जल मरूँगा और साथ ही

    जल मरेगी इस घर को आग से बचाने की मेरी सारी ख़्वाहिशें

    इसीलिए इस कविता का भी कोई मतलब नहीं है

    क्योंकि जिन्हें आग लगानी है वे ये कविता कभी नहीं सुनेंगे

    लेकिन ख़ैर; तुम मेरे पड़ोसियो, मेरे दोस्तो, मेरे आशिको, मेरे दुश्मनो,

    इस घर के साथ ख़ाक होते-होते मैं तुमसे एक आख़िरी गुज़ारिश करना चाहता हूँ

    अपना घर बचा सको तो बचा लो

    तुम्हारे घरों में आग लगाने साक्षात् भगवान राम निकले हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : धर्मेश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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