नींद में भटकता हुआ आदमी

neend mein bhatakta hua adami

राजकमल चौधरी

राजकमल चौधरी

नींद में भटकता हुआ आदमी

राजकमल चौधरी

और अधिकराजकमल चौधरी

    नींद की एकांत सड़कों पर भागते हुए आवारा सपने।

    सेकेंड-शो से लौटती हुई बीमार टैक्सियाँ,

    भोथरी छुरी जैसी चीख़ें

    बेहोश औरत की ठहरी हुई आँखों की तरह रात।

    बिजली के लगातार खंभे पीछा करते हैं;

    साए बहुत दूर छूट जाते हैं

    साए टूट जाते हैं।

    मैं अकेला हूँ।

    मैं टैक्सियों में अकारण खिलखिलाता हूँ,

    मैं चुपचाप फुटपाथ पर अँधेरे में अकारण खड़ा हूँ।

    भोथरी छुरी जैसी चीख़ें

    और आँधी में टूटते हुए खुले दरवाज़ों की तरह ठहाके

    एक साथ

    मेरे कलेजे से उभरते हैं

    मैं अँधेरे में हूँ और चुपचाप हूँ।

    सतमी के चाँद की नोक मेरी पीठ में धँस जाती है।

    मेरे लहू से भीग जाते हैं टैक्सियों के आरामदेह गद्दे

    फुटपाथ पर रेंगते रहते हैं सुर्ख़-सुर्ख़ दाग़।

    किसी भी ऊँचे मकान की खिड़की से

    नींद में बोझिल-बोझिल पलकें

    नहीं झाँकती हैं।

    किसी हरे पौधे की कोमल, नन्हीं शाखें,

    शाखें और फूल,

    फूल और सुगंधियाँ

    मेरी आत्मा में नहीं फैलती हैं।

    टैक्सी में भी हूँ और फुटपाथ पर खड़ा भी हूँ।

    मैं

    सोए हुए शहर की नस-नस में

    किसी मासूम बच्चे की तरह, जिसकी माँ खो गई है,

    भटकता रहता हूँ;

    (मेरी नई आज़ादी और मेरी नई मुसीबतें... उफ़!)

    चीख़ और ठहाके

    एक साथ मेरे कलेजे से उभरते हैं।

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    अंचित

    अंचित

    स्रोत :
    • पुस्तक : ऑडिट रिपोर्ट (पृष्ठ 122)
    • रचनाकार : राजकमल चौधरी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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