वाटिका वर्णन

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    पुनि रहै मांझ जहं बारी, चित्रावलि लाई फुलवारी।

    सोनजरद नागसेर फूले, देखि सुदरसन दिष्ट जो भूले॥

    जाही जूही अति बहुताई, अनवन भांति सेवती लाई।

    बनवेला सतवर्ग चंबेली, रायवेल फली सुखवेली॥

    करना केतकि बास नेवारी, चंपकली जनु कुंदि उतारी।

    कदम गुलाब लाग बहु भांती, बसाहि बकुचन की पांती॥

    मौलसिरी फूली मूदी, जनु सिंगार हरावलि गूंदी।

    पौण बसेरा लेहि लिसि, तेहि फुलवारी पास।

    भोर भए जग प्रगटइ, तिन्ह फूलन्ह की बास॥

    ललित लवंग लता जहं फूली, भौंरा भौंरि कुसुम तेहि भूली॥

    नगर-नगर तहँ डारै जूही, गंधराज फूलहिं संबूही॥

    कस्तूरी सुगंध बिगसाही, ठौर-ठौर सो अधिक बसाही।

    भुइंचंपा फूली बहु रंगा, मानहु दरसा रूप अजंगा॥

    सूरज भांति-भांति अति राते, देखत बने बरनि नहि जाते।

    उड़हि पराग भौंर लपटाहीं, जनु विभूति जोविन लपटाहीं॥

    भरकंडी भौरन संग खेली, जोगिन संग लानि जगु चेली।

    केलि कदम नवमल्लिका, फुल चंपा सुरतान।

    छः ऋतु बारह मास तहँ, ऋतु वसंत अस्थान॥

    वहाँ पर बड़े पेड़ों से घिरे वन के मध्य एक फुलवारी है जिसे चित्रावली ने लगवाया है! वहाँ सोनज़र्द और नागकेसर के फूल फुले हुए हैं। वे फूल प्रिय दर्शनीय है और जो भी उन्हें देख लेता है वह ठगा-सा देखता रह जाता है। वहाँ पर जूही के फूल बहुत अधिक मात्रा में फूले हुए हैं, वहाँ विविध भांति के सफ़ेद गुलाब खिले हुए हैं। वनबेला तथा सात प्रकार के चमेली के पुष्प भी खिले हुए हैं। बेलों में रायबेल, सुखबेली के समान फूली हुई है। उस फुलवारी में केतकी तथा नेवारी के पुष्पों की सुगंध भरी हुई हैं। चंपा की कली फूली हुई ऐसी लगती है मानो कनेर का पेड़, या फूले कमल उतर आया हो। कदंब तथा गुलाब के अनेक प्रकार के पौधे लगे हुए हैं। वे दोनों पौधे इस प्रकार पंक्ति में लगे हुए हैं जैसे उन्होंने हाथ जोड़ रखे हों। मौलश्री के कुछ फूल खिले हुए हैं और कुछ खिले नहीं हैं। इन्हे देखकर ऐसा लगता है मानो सिंगार के लिए अस्थियों की माला गूँथी गई हो। उस फुलवारी के पास रात्रि में पवन रुकता है और सवेरा होते ही उन फूलों की सुगंध लेकर संसार में प्रगट हो जाता है।

    जहाँ सुंदर लौंग की लता फूली हुई थी, वहाँ भौंरा और भौंरी सामान्य फूलों को समझकर भूलकर जाते हैं। उस राज्य के शहर-शहर में जूही के पौधों की डाल फैली हुई है और मोगरा की बेल पूर्णरूप से फूली हुई है। कस्तूरी की सुगंध भी चारों ओर फैल रही है तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर अधिक थी। उस भूमि पर विविध रंगों की चंपा फूली हुई है। उसे देख ऐसा लगता है मानो कामदेव अपना रूप दिखा रहा हो। सूरजमुखी के अनेक भांति के पुष्प खिले हुए बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। उनकी शोभा देखते ही बनती है और उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। उन फूलों से पराग उड़ती है और उनसे भौंरे ऐसे लिपट जाते हैं मानो योगिनी भस्म में लिपट गई हो। भरकंडी नामक कीड़ा भौंरों के साथ ही खेलता है। उसे देख ऐसा लगता है मानो योगिनी के सम चेली है। वहाँ पर कदंब, चमेली, अनेक प्रकार के खेल करती हैं तथा चंपा सुलतान के समान उन्हें देखकर प्रसन्न होती है। वहाँ छः ऋतुएँ तथा बारह मास सदैव रहते हैं तथा वह वसंत ऋतु का घर जैसा लगता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चित्रावली (पृष्ठ 53)
    • संपादक : माया अग्रवाल
    • प्रकाशन : कला मंदिर
    • संस्करण : 1985

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