ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा

ye sara jism jhukkar bojh se duhra hua hoga

दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार

ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा

दुष्यंत कुमार

और अधिकदुष्यंत कुमार

     

    ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,
    मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।

    यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
    मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।

    ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
    वो सब-के-सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा।

    तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है,
    कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा।

    कई फ़ाक़े बिताकर मर गया, जो उसके बारे में,
    वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।

    यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
    ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा।

    चलो, अब यादगारों की अँधेरी कठोरी खोलें,
    कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।
    ____________________________________
    अपने मित्र के. पी. शुंगलु को समर्पित, जिसने मतले का विचार दिया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साये में धूप (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : दुष्यंत कुमार
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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