सो न सका

so na saka

रमानाथ अवस्थी

और अधिकरमानाथ अवस्थी

    सो सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात

    और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात

    मेरे बहुत चाहने पर भी नींद मुझ तक आई

    ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई

    मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई

    दूर कहीं दो आँखें भर-भर आईं सारी रात

    और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात

    गगन बीच रुक तनिक चंद्रमा लगा मुझे समझाने

    मनचाहा मन पा जाना है खेल नहीं दीवाने

    और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने

    देख जिसे मेरी तबियत घबराई सारी रात

    और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात

    रात लगी कहने सो जाओ देखो कोई सपना

    जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना

    यहाँ तुम्हारा क्या, कोई भी नहीं किसी का अपना

    समझ अकेला मौत मुझे ललचाई सारी रात

    और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात

    मुझे सुलाने की कोशिश में जाने अनगिन तारे

    लेकिन बाज़ी जीत गया मैं वे सबके सब हारे

    जाते-जाते चाँद कह गया मुझसे बड़े सकारे

    एक कली मुरझाने को मुस्काई सारी रात

    और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात

    स्रोत :
    • पुस्तक : आख़िर यह मौसम भी आया (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : रमानाथ अवस्थी
    • प्रकाशन : राजपाल
    • संस्करण : 1998

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