मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

main tufanon mein chalne ka aadi hoon

गोपालदास नीरज

गोपालदास नीरज

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

गोपालदास नीरज

और अधिकगोपालदास नीरज

    मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो।

    हैं फूल रोकते, काँटें मुझे चलाते

    मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते

    सच कहता हूँ जब मुश्किलें नहीं होती हैं

    मेरे पग तब चलने में भी शर्माते

    मेरे संग चलने लगें हवाएँ जिससे

    तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो।

    मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो।

    अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूँ

    मैं मर्घट से ज़िंदगी बुला के लाया हूँ

    हूँ आँख-मिचौनी खेल चला क़िस्मत से

    सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ

    है नहीं स्वीकार दया अपनी भी

    तुम मत मुझ पर कोई एहसान करो।

    मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो।

    शर्म के जल से राह सदा सिंचती है

    गति की मशाल आँधी में ही हँसती है

    शोलो से ही शृंगार पथिक का होता है

    मंज़िल की माँग लहू से ही सजती है

    पग में गति आती है, छाले छिलने से

    तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो।

    मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो।

    फूलों से जग आसान नहीं होता है

    रुकने से पग गतिवान नहीं होता है

    अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी

    है नाश जहाँ निर्मम वहीं होता है

    मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग 'धरा' पर जिससे

    तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो।

    मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो।

    मैं पंथी तूफ़ानों में राह बनाता

    मेरा दुनिया से केवल इतना नाता

    वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर

    मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता

    मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हँसकर जिससे

    तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो।

    मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ

    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गीत जो गाए नहींं (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : गोपालदास नीरज
    • प्रकाशन : डायमंड पॉकेट बुक्स
    • संस्करण : 2019

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