ब्रजी लोकगीत : राजे, ननद भावज दोनों बैठिए
brji lokgit ha raje, nanad bhawaj donon baithiye
रोचक तथ्य
संदर्भ—प्रद्युम्न-जन्म।
राजे, ननद भावज दोनों बैठिए,
राजे, रुकिमिनि नौ दस मास गरभ ते।
राजे, ननदुलि बात चलाइए,
राजे, जौ तिहारें होइ नंदलाल,
जगमोहन लुगरा दीजिए।
लाली, जौ मेरे होड़ नंदलाल,
जगमोहन लुगरा लीजिए
राजे, ननद चलीं ऐ अपने सासुरे॥
बाके होरिलु सबद सुनाइए,
जगमोहन लुगरा माँगिए।
राजे, कैसे बचाऊँ अपने प्रान,
ननदुलि ते छिपाइए॥
राजे, घुरि गए तबल निसान,
गमन लागे सोहिले।
राजे, नउआ के ऐ लेउ बुलाय,
लुचन लैकें भेजिए।
राजे, मेरी मायूँ कहौ समझाय,
रुकिमिनि ने जाए हीरालाल॥
राजे, इक बनु नाँखि दूजौ बन नाख्यौ,
तीजे बन पहुँचे ऐ जाय, रुकिमिनि के बाबुल कें।
भरी रे कचहरी बबुल जी की बैठिए॥
राजे, बिरन जी बैठे उनके पास,
राजे, नउआ ने लुचन दिखाइए॥
बाके बाबुल खुसी रही उर छाय,
बिरन बाके सुनि रहे।
राजे, घोड़ी बँधी ऐं घुड़सार,
नउआ के रे देउ चढाय॥
राजे, भरी रे कचहरी राजन उठि चले।
राजे, छोटे बिरन उनके साथ,
महलनु जाइ पहुँचिए॥
राजे, कही ऐ माय समुझाय,
भवज उनकी सुनि रहीं।
राजे, रुकिमिनि जाए नंदलाल,
नउआ बधाई लै कें आइए॥
राजे, षटरस बिंजन बनाय,
तौ नउआ जिमाइए।
राजे, तोड़र देउ पहिराय,
तौ लाऔ पाँचौ कापड़े॥
राजे, जगमोहन लुगरा औ लाउ,
नाऊ पैधरि दीजिए।
राजे, बीच में बसति ऐ सुभद्रा,
तौ उनें न दिखाइए॥
राजे, इक बन नाँखि तौ दूजौ बन नाँखिए,
राजे, तीजे बन आइ मँझारे, सुभद्रा के महल में।
राजे, पूछति पीहरि की बात, कहा लै आइए॥
राजे, हम तौ लुचन लै कें भेजे,
रुकिमिनि के बबुल कें।
लाली, तुमकूँ बधाई लै कें आए,
कृष्ण लैबे आइए॥
राजे, सोने के तोड़र लाउ,
नाऊ ऐ पहिराइए।
राजे, षटरस भोजन बनाय,
नाऊ ऐ जिमाइए॥
नउआ रे चलूँगी तिहारे साथ,
बदनि पूरी है गई।
लाली, तुम तौ बाबरी गमारि।
मेरे संग मति चलौ।
तिहारे बिरन तौ आमें लैनहार,
आदरु करि जाइए॥
लाली, बिना बुलाए मति जाऔ,
आदरु नाएँ होय।
राजे, सुभद्रा निपट गमारि,
नाऊ के संग चलि दई॥
राजे, बिरन जी बैठे चटसार,
देखि भैना हँसि दए।
भैना, देखि भतीजे को सोहिली,
भाजति तुम आइए॥
राजे, महलन भावज सुनि रहीं।
राजे, हथियन में बड़ौ हाती,
जरद ऐ अंबरी।
राजे, अरजुन नन्देऊ बैठि जाउ,
ननद सुख पाइये॥
राजे, बकुचिन में बड़ी चूँदरी,
राजे, जाइ ननदिया ऐ देउ, ओढ़ि घर जाइए।
राजे, गहनेन में बड़ौ हाँसुला,
राजे जाइ ननदिया ऐ देउ, जाई पहिरि घर जाइए॥
भाभी, हथिया बँधे बहु तेरे घुड़सार में,
भाभी, बदनि बदी ऐ सोई देउ,
जगमोहन लुगरा दीजिए॥
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 267)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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