भोजपुरी लोकगीत : पियवा जे चलेला उतर बनिजरिया

bhojapuri lokgit ha piywa je chalela utar banijariya

रोचक तथ्य

संदर्भ—पति के बाहर जाते समय पत्नी की उक्ति।

पियवा जे चलेला उतर बनिजरिया, कि केई रे छइहै ना।

मोरा उजड़ल बँगलवा, कि केई रे छइहैं ना।।टेक।।

घरवा बाड़ी धनी छोटका रे भइया, कि उहे छइहैं ना।

तोरा उजड़ल बँगलवा, कि उहे छइहैं ना।।1।।

देवरा के छावल मन ही भावे, कि तीलि तीलि ना।

देवरा बूना टपकावे, कि तीलि तीलि ना।।2।।

जब तुहुँ पिया जइब बिदेसवा, कि केई रे चभिहैं ना।

मोरा लगावल बिरवा, कि केई रे चभिहैं ना।।3।।

घरवा बाड़े धनी छोटका देवरवा, कि उहे रे चभिहैं ना।

तोर लगावल बिरवा, कि उहे चभिहैं ना।।4।।

देवरा के चाभल मनही भावे, कि तीलि तीलिना।

देवरा मुसुकि चलावे, कि तीलि तीलि ना।।5।।

कोई पति व्यापार करने के लिए उत्तर दिशा की ओर चलने को तैयार हुआ तो पत्नी ने उससे पूछा—मेरे उजड़े हुए बँगले को कौन छाएगा।।टेक।।

पति ने उत्तर दिया—हे धनी! मेरा छोटा भाई है न, वही तेरा उजड़ा हुआ

बंगला छाएगा।।1।।

पत्नी ने कहा—देवर का छाना मुझे नहीं सुहाता, क्योंकि उससे बूँद-बूँद

पानी टपकता है।।2।।

फिर पत्नी ने उससे कहा—हे प्रियतम! जब आप विदेश चले जाएँगे तो मेरा लगाया हुआ पान का बीड़ा कौन खाएगा? (अभी तो आप मेरे हाथ से लेकर खाते हैं)।।3।।

तब पति ने कहा—हे धना! घर में छोटा देवर है न, वही तुम्हारे लगाए हुए बीड़े को खाएगा।।4।।

पत्नी ने कहा—देवर का पान खाना मुझे अच्छा नहीं लगता, क्योंकि वह

बार-बार मुस्कराता रहता है।।5।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 138)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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