भोजपुरी लोकगीत : पटना नगरिया से सोना मँगवलें
bhojapuri lokgit ha patna nagariya se sona mangawalen
रोचक तथ्य
संदर्भ—नायिका कथन सखी से।
पटना नगरिया से सोना मँगवलें,
देखऽयार नथिया गढ़ावें हरि अपने।।टेक।।
नथिया पहिरि हम सुतली ओसरवाँ,
देखऽयार चोरी करेलें हरि अपने।।1।।
चोर चोर कहि हम हरि के पकड़लीं,
देखऽयार पइयाँ परेलें हरि अपने।।2।।
कासी नगरिया से साटन मँगवलें,
देखऽयार चोली सियावें हरि अपने।।3।।
चोलिया पहिरि हम सुतली ओसरवाँ,
देखऽयार चोलिया खोलेलें हरि अपने।।4।।
चोर चोर कहि हम हरि के पकड़लीं,
देखाऽयार पइयाँ परेलें हरि अपने।।5।।
एक स्त्री अपनी सखी से एक अंतरंग रहस्य उद्घाटित करते हुए कहती है—
हे सखी! मेरे प्रियतम ने पटना शहर से सोना मँगवाया और मेरे
लिए नथ गढ़वाई।।टेक।।
वह नथ पहन कर मैं ओसारे में सो गई, मौक़ा पाकर उन्होंने उसे चुरा लिया।।1।।
मैं जग पड़ी। मैंने समझा कोई चोर होगा। अतः मैंने चोर-चोर कह कर उन्हें पकड़ लिया। अब तो उनकी हालत बहुत ख़राब हो गई। वे सोचने लगे कि अभी पड़ोसी आ जाएँगे तो क्या कहेंगे? अतः हे सखी! वे मेरे पैरों पड़ने लगे।।2।।
इसी प्रकार एक बार की बात है कि उन्होंने काशी से मेरे लिए साटन का
कपड़ा मँगाया और हे सखी! मेरे लिए चोली सिलाई।।3।।
चोली पहनकर मैं अपने ओसारे में सो गई। हे सखी! मेरे स्वामी चोली खोलने लगे।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 143)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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