भोजपुरी लोकगीत : जब हम रहली बाबा के घरवा
bhojapuri lokgit ha jab hum rahli baba ke gharwa
रोचक तथ्य
संदर्भ—नववधू का कथन।
जब हम रहली बाबा के घरवा,
अवरु भइया के घरवा नु हो।
आरे खेलत रहली सुपुलिया मउनिया,
भरल मोतिया नु हो।।1।।
जब हम अइनी ससुर घरे हो,
ए सखि, रचि के भइनी कोइलिया,
नगीनिया अइसन डोलीले हो।।2।।
पासावा खेलत तुहु बबुआ,
सरबे गुनबे आगर हो।
बबुआ, कवन संकट बहुआ के दीहल,
सखी से लइया लावेली हो।।3।।
हे सखी! जब मैं अपने पिता और भाई के घर थी तो वहाँ सुपलिया और मउनी में मोती भर कर खेलती रहती थी।।1।।
जब मैं ससुराल आई तो काम करते-करते कोयल-सी हो गई और अब नागिन-सी घूमती रहती हूँ।।2।।
यह बात जब सास ने सुनी तो उसने अपने पुत्र से कहा—हे प्रिय पुत्र! जुआ खेलते-खेलते तुम सभी गुणों से पूर्ण हो गए हो, किंतु तुमने बहू को क्या कष्ट दिया है कि वह अपनी सखी से शिकायत कर रही है।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 84)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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