अवधी लोकगीत : सभवै बइठेनि ससुरू तौ वऊ हँसि पूँछइँ

awadhi lokgit ha sabhawai baitheni sasuru tau wau hansi punchhain

रोचक तथ्य

संदर्भ—पुत्र के सुंदर होने का कारण।

सभवै बइठेनि ससुरू तौ वऊ हँसि पूँछइँ,

बउहरि! कवन-कवन दिहेउ दान, होरिल बड़ा सुंदर?।।1।।

सोनवा तौ दिहेउँ अढ़इयन, रुपवा पसेरिन,

ससुरु! लालिनि गइया संकल्पेउँ, होरिल बड़ा सुन्दर।।2।।

मचियहिं बइठी हैं सासू तौ वऊ हँसि पूँछइँ,

बउहरि! कवन-कवन फल खाइउँ, होरिल बड़ा सुन्दर?।।3।।

अमवा तौ खाइउँ घवधवन, अमिली घपसवन,

सासू! नित उठि खाइउँ नवरंगिया, होरिल बड़ा सुन्दर।।4।।

हँसि-खेलि आयेनि देवरवा तौ वऊ हँसि पूँछईं,

भउजी! केकरी सेजरिया चित लाइउ, होरिल बड़ा सुन्दर?।।5।।

सेजिया तौ सोइउँ सहेब कै मैं अपने सहेब कै,

देवरा! सपने माँ देखिउँ तुहीं का, होरिल बड़ा सुन्दर।।6।।

ससुरे से आई हैं ननदिया तौ वऊ हँसि पूँछइँ,

भउजी! कवने पहर लट छोरिउ तौ कवने नहाइउ, होरिल बड़ा सुन्दर?।।7।।

पहिले पहर लट छोरिउँ, दुसरे नहाइउँ,

ननदी! डीठि परि ननदोइया, होरिल बड़ा सुन्दर।।८।।

सभा में ससुर जी बैठे थे, उन्होंने मुझसे हँसकर पूछा—बहू! तुमने कौन कौन-सा दान दिया था कि जिसके कारण तुम्हारा पुत्र बहुत सुंदर है?।।1।।

बहू ने बताया—मैंने अढ़ैया भर सोना दिया और पसेरी भर रुपए। हे ससुर

जी! मैंने लाल गाय का संकल्प किया, इसी से पुत्र बहुत सुंदर है।।2।।

मचिया पर सास जी बैठी थीं, उन्होंने भी मुझसे हँसकर पूछा—बहू! तुमने कौन-कौन से फल खाए थे, तुम्हारा पुत्र बहुत सुंदर है?।।3।।

बहू ने कहा—मैंने घौद भर आम खाए, घपसा पर इमली और हे सास जी! नित्य उठकर नारंगियाँ खाईं, इसी से पुत्र बहुत सुंदर है।।4।।

हँस-खेलकर देवर आए, उन्होंने भी हँसकर पूछा—हे भौजी! आपने किसकी सेज पर मन लगाया अर्थात् किसकी सेज पर सोई जिससे पुत्र बहुत सुंदर है?।।5।।

भाभी ने उत्तर दिया-सेज तो मैं अपने स्वामी की ही सोई थी, किंतु हे

देवर जी! मैंने स्वप्न में तुम्हें ही देखा था, जिससे पुत्र सुंदर है।।6।।

ससुराल से ननद जी आईं, उन्होंने भी हँसकर पूछा—हे भाभी! आपने किस पहर में बालों की लट खोली थी और किस पहर नहाई थीं, पुत्र बहुत सुंदर है?।।7।।

भाभी ने कहा—पहले पहर में मैंने लट खोली और दूसरे में नहाई थी, हे ननद जी! उसी समय ननदोई जी की दृष्टि पड़ गई, इसीलिए होरिल बड़ा सुंदर हैं।।८।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 150)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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