मोय बल रात राधका जी कौ

moy bal raat radhka ji kau

ईसुरी

ईसुरी

मोय बल रात राधका जी कौ

ईसुरी

और अधिकईसुरी

    मोय बल रात राधका जी कौ!

    करों आसरौ की कौ!

    दीनदयाल दीन दुख देखत, जिनकी मुख है नीकौ॥

    पैलें पार पातकी कर दए, मोहन सौ पति जी कौ॥

    कैसौ लगत खात सब कोऊ, स्वाद कात ना घी कौ॥

    ‘ईसुर’ कछू काम कर जाओ, कदमन के ढिंग झींकौ॥

    मुझे राधिका जी का बल-भरोसा है। अन्य किसका आसरा करूँ? दीनदयालु प्रभु, जिनका मुख अनूठा है, दीनों के दुख पर ध्यान देते हैं। उन्होंने पापियों को पहले पार किया, ऐसे हैं राधिकापति! घी खाते सभी हैं, पर उसका स्वाद कैसा है-कोई नहीं कह पाता। (प्रभु ऐसे ही अनिर्वचनीय हैं।) अरे ईसुरी, यहाँ कुछ अच्छा काम कर जाओ। राधिका जी के चरणों में दीनता से झुको—प्रणाम करो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 24)
    • संपादक : घनश्याम कश्यप
    • प्रकाशन : शब्दपीठ
    • संस्करण : 1995

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