रहिमन अब वे बिरछ कहँ

rahiman ab we birachh kahan

रहीम

रहीम

रहिमन अब वे बिरछ कहँ

रहीम

और अधिकरहीम

    रहिमन अब वे बिरछ कहँ, जिनकी छाँह गँभीर।

    बागन बिच बिच देखिअत, सेंहुड़, कुँज, करीर॥

    रहीम कहते हैं कि वे पेड़ आज कहाँ, जिनकी घनी छाया होती थी! अब तो इस संसार रूपी बाग़ में काँटेदार सेंहुड़, कटीली झाड़ियाँ और करील देखने में आते हैं। कहने का भाव यह है कि सज्जन और परोपकारी लोग अब नहीं रहे, जो अपने सद्कर्मों से इस जगत को सुखी रखने का जतन करते थे। अब तो ओछे लोग ही अधिक मिलते हैं जो सुख नहीं, दु:ख ही देते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 95)
    • रचनाकार : रहीम
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1985

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