फीकी पै नीकी लगै
phiki pai niki lagai
फीकी पै नीकी लगै कहिए समय बिचारि।
सब को मन हरषित करै ज्यौं विवाह मैं गारि॥
भावार्थ: गाली अर्थात् अपशब्द प्रायः फीके तथा नीरस लगते हैं और गाली कभी−कभी आपस में भीषण कलह को जन्म देती है। किंतु समय का ध्यान रखकर यदि किसी को गाली दी जाए तो वह बहुत ही सरस ओर मन को अच्छी लगती है। विवाह के अवसर पर कन्या−पक्ष की स्त्रियों द्वारा गाई जाने वाली गालियाँ वर−पक्ष के लोगों को प्रफुल्लित करती हैं और वे उन गालियों को सुनकर बुरा भी नहीं मानते हैं। उस अवसर पर दी गई गालियों से वातावरण सरस बन जाता है।
- पुस्तक : सतसई−सप्तक (पृष्ठ 287)
- संपादक : श्यामसुंदर दास
- प्रकाशन : हिंदुस्तान एकेडमी
- संस्करण : 1931
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