घर दीन्हे घर जात है

ghar dinhe ghar jat hai

तुलसीदास

तुलसीदास

घर दीन्हे घर जात है

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय।

    ‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥

    यदि मनुष्य एक स्थान पर घर करके बैठ जाय तो वह वहाँ की माया-ममता में फँसकर उस प्रभु के घर से विमुख हो जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य घर छोड़ देता है तो उसका घर बिगड़ जाता है, इसलिए कवि का कथन है कि भगवान् राम के प्रेम का नगर बना कर घर और बन दोनों के बीच समान रूप से रहो, पर आसक्ति किसी में रखो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 84)
    • संपादक : टेकचंद शास्त्री
    • रचनाकार : तुलसीदास
    • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
    • संस्करण : 1955

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