उसके नाम

uske nam

अनुवाद : चमनलाल

पाश

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    मेरी महबूब, तुम्हें भी गिला होगा मुहब्बत पर
    मेरी ख़ातिर तुम्हारे बेक़ाबू चावों का क्या हुआ
    तुमने इच्छाओं को सुई से जो उकेरी थी रूमालों पर
    उन धूपों को क्या बना, उन छायाओं का क्या हुआ

    कवि होकर कैसे बिन पढ़े ही छोड़ जाता हूँ
    तेरे नयनों में लिखी हुई इक़रार की कविता
    तुम्हारे लिए सुरक्षित होंठों पर पथरा गई है री
    बड़ी कड़वी, बड़ी नीरस, मेरे रोजगार की कविता

    मेरी पूजा, मेरा ईमान, आज दोनों ही ज़ख़्मी हैं
    तुम्हारी हँसी और अलसी के फूलों पर नाचती हँसी
    मुझे जब लेकर चले जाते हैं, तुम्हारी ख़ुशी के दुश्मन
    बहुत बेशर्म होकर खनकती है हथकड़ियों की हँसी

    तुम्हारा दर ही है, जिस जगह झुक जाता है सिर मेरा
    मैं जेल के दर पर सात बार थूककर गुज़रता हूँ
    मेरे गाँव में ही सत्व है कि मैं बिंध-बिंधकर जीता हूँ
    मैं हाकिम के सामने से, शोर की तरह दहाड़कर गुज़रता हूँ 

    मेरी हर पीड़ा एक ही सुई की नोक से गुज़रती है
    है लुटी शांति सोच की, क़त्ल है जश्न खेतों के
    वे ही बन रहे हैं देखो तुम्हारे हुस्न के दुश्मन
    जो आज तक चरते रहे हमारे खेतों का हुस्न

    मैंने देखा है ओस से नहाते गेहूँ के बदन को
    देखने पर मुझे उसके मुख पर आई लाज भी दिखी है
    मैंने बहते खाल के पानी पर बिंधती देखी है धूप सूरज की
    मैंने रात सपने में वृक्षों को चूमते देखा है

    धरेक1 के फूल पर गाती महक को मैंने देखा है
    कपास के फूलों में ढलती टकसाल को मैंने देखा है
    चोरों की तरह खुसर-फुसर करती चरियों को मैंने देखा है
    सरसों के फूल पर ढलती शाम को मैंने देखा है

    मेरा हर चाव इन फसलों की मुक्ति से जुड़ता है
    तुम्हारी मुस्कान की गाथा है, हर किसान की गाथा
    मेरी क़िस्मत है बस अब बदलते हुए वक़्त की क़िस्मत
    मेरी गाथा है बस अब चमकती तलवार की गाथा

    मेरा चेहरा आज तल्ख़ी ने ऐसे खुरदुरा बना दिया है
    कि इस चेहरे पर आकर चाँदनी को खुजली-सी लगती है
    मेरी ज़िंदगी के ज़हर आज इतिहास के लिए अमृत हैं
    इन्हें पी-पीकर मेरी क़ौम को होश-सा आता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 127)
    • संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
    • रचनाकार : पाश
    • प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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