दिव्य प्रेमी मंसूर
'चढ़ा मंसूर सूली पर पुकारा इश्क़-बाज़ों को,
व उसके बाम का जीना है आए जिसका जी चाहे।'
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'शोर-ए-मंसूर अज़, कुजा वो दार-ए-मंसूर अज़ कुजा,
ख़ुद ज़दी बांगे—अनलहक़ बरसर-ए-दार आमदी।'*
यह कुछ ईरान और अरब ही में नहीं, बल्कि अक्सर मुल्कों में क़ायदा